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लाखों युवा भारतीय सेना में शामिल होकर देश सेवा का सपना देखते हैं, तैयारी करते हैं और बहुत से अपनी मंजिल पा भी लेते हैं. लेकिन भारत में एक गांव ऐसा भी है जहां देश सेवा की पराकाष्ठा ऐसी है कि लोग उस गांव को ‘मिलिट्री गांव’ के नाम से जानते हैं. लगभग हर परिवार ने भारतीय सीमा की सुरक्षा के लिए सोल्जर दिया है. यह आजकल में नहीं हुआ बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. देश के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देने का इतिहास काफी पुराना है. हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के सतारा के मिलिट्री आपशिंगे गांव की.
350 परिवार और 3000 लोगों के इस गांव में 1962 की जंग से लेकर आज तक शहीदों का इतिहास रहा है. सतारा शहर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव को सशस्त्र बलों में अपने योगदान के लिए आपशिंगे मिलिट्री के रूप में भी जाना जाता है. भारतीय सेना के दक्षिणी कमान के जनरल ऑफिस कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अजय कुमार सिंह ने सोमवार को महाराष्ट्र के सतारा जिले में आपशिंगे ‘मिलिट्री गांव’ में एक लर्निंग सेंटर और जिम का उद्घाटन किया.
पश्चिमी महाराष्ट्र में इन जिलों के युवाओं को एक और सुसज्जित करने के उद्देश्य से, श्री शनमुखानंद ललित कला, संगीता सभा और दक्षिण भारतीय शिक्षा सोसाइटी ने संयुक्त रूप से लर्निंग और फिजिकल फिटनेस के लिए इंस्टीट्यूशनल सोशल रिस्पांसिबिलिटी (ISR) का सेट-अप तैयार किया है. एक आधिकारिक बयान के मुताबिक इसका खर्च करीब 80 लाख रुपये है.
ब्रिटिश काल से चली आ रही सेना में शामिल होने की परंपरा
इस गांव के लोग ब्रिटिश काल से देश सेवा के लिए अपनी जान न्यौछावर करते आ रहे हैं, और यह परंपरा आज भी जारी है. ब्रिटिश काल में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इस गांव के 46 जवान शहीद हुए थे. तभी से इस गांव का नाम मिलिट्री आपशिंगे रखा गया था. द्वितीय विश्वयुद्ध में इस गांव के चार जवान शहीद हुए थे.
चीन और पाकिस्तान के खिलाफ लड़ी जंग में भी रहा योगदान
चाहे चीन के खिलाफ 1962 की जंग हो या पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और 1971 में लड़ी गई जंग. इस गांव के नौजवानों ने हंसते-हंसते देश के नाम अपनी जान दी. जैसे एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, इंजीनियर का इंजीनियर और टीचर का बेटा टीचर बन रहा है, उसी तरह इस गांव के बेटे सोल्जर बन रहे हैं. इस गांव के लोग नौसेना, वायुसेना, बीएसएफ, सीआरपीएफ और अन्य सुरक्षा बलों में सेवारत हैं.
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