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बिहार के पूर्व सांसद और बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. साल 1994 में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन को रिहाई मिलने के बाद अब उनकी पत्नी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
दिवंगत डीएम की पत्नी उमा ने याचिका दायर कर मांग की है कि आनंद मोहन को फिर से जेल भेजा जाए. उमा ने बिहार सरकार के नियमों के बदलाव के नोटिफिकेशन को भी रद्द करने की मांग की है.
उनकी दलील है कि जब आनंद मोहन को सजा हुई तब यह कानून बनाया गया था जिसमें बदलाव का प्रावधान नहीं था, लिहाजा अब बिहार सरकार द्वारा किया गया बदलाव  29 साल पहले दिए गए फैसले पर लागू नहीं होगा.
दरअसल बिहार सरकार ने 10 अप्रैल की कारागार नियमावली, 2012 के नियम 481(i)(क) में संशोधन कर दिया. इसके तहत ‘ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या’ को अब अपवाद की श्रेणी से हटा दिया. पुराने नियम के तहत सरकारी सेवक की हत्या करने वालों को पूरी सजा से पहले रिहाई की छूट का कोई प्रावधान नहीं था लेकिन नियम में संशोधन के बाद ऐसे अपराधियों के लिए भी अब छूट मिल सकेगी. इस नए नियम के तहत ही बिहार सरकार ने पिछले दिनों आनंद मोहन समेत 27 कैदियों की रिहाई की अधिसूचना जारी की थी.
पटना हाई कोर्ट में भी याचिका
आनंद मोहन सिंह की रिहाई के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में भी एक जनहित याचिका दाखिल की गई है. याचिका में मांग की गई है कि वह सरकार की तरफ से जेल मैनुअल में किए गए संशोधन पर रोक लगाए. इस बदलाव को याचिकाकर्ता ने गैरकानूनी बताया है. याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार के इस फैसले से सरकारी सेवकों का मनोबल गिरेगा.
पहली बार 1990 में विधायक बने थे आनंद मोहन
आनंद मोहन 1990 में पहली बार जनता दल के टिकट पर महिषी सीट से विधायक बने. देश में मंडल कमीशन लागू हुआ तो आनंद मोहन उसके विरोध में उतरे और राजपूतों के बीच मजबूत पकड़ बनाई. 1993 में आनंद मोहन ने बिहार पीपल्स पार्टी बनाई, जिसे स्थापित करने के लिए आक्रमक रुख अपनाया. वैशाली लोकसभा उपचुनाव में उनकी पत्नी लवली आनंद ने आरजेडी उम्मीदवार को हरा दिया.
आनंद मोहन की रिहाई के राजनीतिक मायने
आनंद मोहन की रिहाई को लेकर राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने राजपूत वोटों में सेंध लगाने के लिए यह कदम उठाया है.सत्ताधारी नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार है, उसे लगता है कि बिहार के राजपूत समाज का समर्थन उसे लोकसभा चुनाव में मिल सकता है. 
 
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