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मुख्तार अंसारी के भाई और गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी को कोर्ट द्वारा 29 मार्च 2023 को गैंगस्टर मामले में दोषी करार दे दिया गया था. इस फैसले के बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. उन्हें चार साल की सजा सुनाई गई है.
अफजाल अंसारी की सांसदी जाने के बाद अब गाजीपुर में राजनीतिक कयासबाजी के साथ अटकलों का दौर भी शुरू हो गया है. जनता और राजनीतिक दलों के बीच उहापोह की स्थिति है कि अब गाजीपुर का राजनीतिक भविष्य क्या होगा.
सभी दल और राजनीतिक जानकार यह मानते हैं कि जल्द ही उपचुनाव हो सकते हैं, ऐसे में भारतीय जनता पार्टी की स्थानीय इकाई लोकसभा चुनाव के लिए चेहरा तलाश रही है.
2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी की टिकट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा ने लड़ा था, लेकिन वो गठबंधन के प्रत्याशी अफजाल अंसारी से एक लाख से ज्यादा वोटों से हार गए थे.
इसके बाद आजकल मनोज सिन्हा जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल का पद संभाल रहे हैं. ऐसे में अब राजनीतिक जानकार मानते हैं कि गाजीपुर जैसी सीट पर भाजपा में मनोज सिन्हा के बाद सेकेंड लाइन में कोई चेहरा फौरी तौर पर नजर नहीं आता है.
सुर्खियों में मनोज सिन्हा के बेटे का नाम
हालांकि अटकलों में मनोज सिन्हा के बेटे अभिनव सिन्हा का नाम जरूर चल रहा है. अभिनव आजकल पिता के स्टाइल में गाजीपुर की सभी विधानसभाओं में जनसंपर्क अभियान में लगे हुए हैं. 
वहीं मोहम्मदाबाद की पूर्व विधायक अलका राय और उनके बेटे पियूष राय भी सुर्खियों में है, जबकि चर्चा तो एमएलसी विशाल सिंह “चंचल” और गाजीपुर के पूर्व सांसद राधे मोहन सिंह की भी खूब है.
उन्होंने 2009 के चुनाव में अफजाल अंसारी को हराया था. उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन छोड़ दिया है और भाजपा नेताओं के संपर्क में भी हैं. वहीं भाजपा के पिछड़े नेताओं में एक नाम है प्रोफेसर शोभनाथ यादव का, जो लगभग डेढ़ दशक से भाजपा में संगठन का दायित्व संभाल रहे हैं और आजकल प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी में भी हैं. 
वहीं एक चर्चा और है कि भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व गाजीपुर सीट को बेहद खास मानता है और कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहता है. ऐसे में यह सीट गठबंधन के किसी दल को दी जा सकती है.
गठबंधन दल में सबसे पहले नाम आता है निषाद पार्टी का, निषाद पार्टी के उम्मीदवार सुभाष पासी या फिर कोई सवर्ण चेहरे को इस सीट पर उतारा जा सकता है.
राजभर भी आजमा सकते हैं किस्मत
वहीं अटकलों के बाजार में ओमप्रकाश राजभर से भाजपा के नजदीकियों की भी चर्चा है. गाजीपुर की लोकसभा सीट ओमप्रकाश राजभर के खाते में भी जा सकती है. राजनीतिक दिग्गजों को ऐसी संभावना भी दिख रही है.
इस सीट से ओमप्रकाश राजभर के परिवार से भी प्रत्याशी को उतारा जा सकता है. अब बात रह गई समाजवादी पार्टी की  तो अफजाल अंसारी वो चेहरा थे जो 2019 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ रालोद के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे और जीत दर्ज की थी.
इस बार चर्चा यह भी थी कि अफजाल अंसारी बहुजन समाज पार्टी छोड़ करके समाजवादी पार्टी का दामन थाम लेंगे और समाजवादी पार्टी के ही टिकट पर चुनाव लड़ेंगे, जिसका खुलासा पूर्व सपा सांसद राधेमोहन सिंह ने भी किया था. 
कोर्ट से सजा मिलने के बाद अब अफजाल अंसारी की संसद सदस्यता समाप्त कर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया है, ऐसे में अब समाजवादी पार्टी भी दूसरा चेहरा ढूंढने में जुट गई है.
शिबगतुल्लाह अंसारी के नाम की भी चर्चा
वहीं बात अगर अंसारी परिवार की करें तो अफजाल और मुख्तार अंसारी के सबसे बड़े भाई शिबगतुल्लाह अंसारी मोहम्मदाबाद से दो बार विधायक रहे चुके हैं, अब उनका नाम भी आगे किया जा रहा है.
हालांकि जानकार यह भी मानते हैं कि अगर अफजाल अंसारी के परिवार से राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कोई नाम नहीं सुझाया तो दूसरा बड़ा नाम पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सिंह का भी आता है, जो 6 बार विधायक होने के साथ एक बार गाजीपुर के सांसद भी रह चुके हैं. 
वहीं उमाशंकर कुशवाहा, राजेश कुशवाहा आदि कई नाम गैर यादव और पिछड़े वर्ग से भी सुर्खियों में है. बात अगर बीएसपी की करें तो पूर्व विधायक डॉक्टर राजकुमार गौतम के साथ डॉक्टर मुकेश सिंह का नाम भी सुर्खियों में है.
क्या है गाजीपुर का राजनीतिक समीकरण 
अगर गाजीपुर के राजनीतिक समीकरण को देखा जाए तो यहां जातिगत मुद्दे चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं.  जनता विकास तो चाहती है लेकिन अपनी जात-बिरादरी और धर्म के नेताओं के प्रति आस्थावान ज्यादा रहती है. 
यही कारण था की बीसों हजार करोड़ की विकास परियोजनाओं का दावा करने वाले मनोज सिन्हा चुनाव सपा, बसपा और रालोद प्रत्याशी से चुनाव हार गए थे. गाजीपुर में पांच विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर लोकसभा की सीट बनी है.
यहां फिलहाल 21 लाख से ज्यादा वोटर्स हैं, जिसमें 5 से साढ़े 5 लाख यादव वोटर्स हैं.  वहीं 5 लाख के आसपास दलित वोटर्स हैं. गाजीपुर सीट पर यादव, दलित और मुस्लिम वोटरों को जोड़ दिया जाए तो 50 फीसदी से ज्यादा वोट बैंक इन्हीं का है.
 
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