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अतीक़ अहमद के बेटे असद अहमद
यूपी के स्पेशल टास्क फ़ोर्स यानी एसटीएफ़ ने जुलाई 2020 में गैंगस्टर विकास दुबे के एकाउंटर की कहानी बताई थी.
एसटीएफ़ ने कहा था कि मध्य प्रदेश के उज्जैन से पुलिस दुबे को गाड़ी में ले जा रही थी, तभी सड़क पर अचानक कुछ मवेशी आ गए थे.
एसटीएफ़ का कहना था कि इन मवेशियों को बचाने के चक्कर में कार पलट गई थी और इसी का फ़ायदा उठाकर विकास दुबे पुलिस से बंदूक छीनकर भागने लगे थे.
एसटीएफ़ ने बताया था कि इसी दौरान दोनों तरफ़ से गोलीबारी हुई थी और विकास दुबे मारे गए थे.
विकास दुबे के मारे जाने के बाद से उत्तर प्रदेश पुलिस और सरकार पर यह तंज़ किया जाता है कि यहाँ गाड़ी कभी भी पलट सकती है.
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पिछले महीने ही हिंदी न्यूज़ चैनल आज तक के एक प्रोग्राम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ से एंकर ने सवाल पूछा था, ''तो आपका तरीक़ा वही चलेगा, लॉ एंड ऑर्डर में और क़ानून में गाड़ी यूँ ही पलटेगी?''
इस सवाल को सुनकर हँसते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ''प्रदेश में 24 करोड़ जनता की सुरक्षा और सम्मान के लिए क़ानून का राज कैसे स्थापित होगा, ये एजेंसियाँ तय करेंगी और उसके अनुसार, उसे आगे बढ़ाएँगी.''
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अतीक़ अहमद
एंकर ने पूछा, क्या निर्देश है आपका? गाड़ी पलटेगी? जवाब में योगी ने कहा था, ''देखिए एक्सिडेंट हो सकता है. इसमें कौन सी दो राय है? एक्सिडेंट किसी का भी हो सकता है. क्या बात कर रही हैं.''
योगी के इस जवाब को सुन दर्शक खिलखिलाकर हँसने लगे थे और जमकर ताली भी बजाई थी. एक महीने पहले ही योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में अतीक़ अहमद का नाम लेते हुए कहा था, ''इस माफ़िया को मिट्टी में मिला देंगे.''
गुरुवार को गैंगस्टर अतीक़ अहमद के 19 साल के बेटे असद अहमद और उनके सहयोगी ग़ुलाम हसन को झांसी में यूपी पुलिस ने कथित एनकाउंटर में मारा, तो योगी आदित्यनाथ के इन पुराने बयानों की चर्चा सोशल मीडिया पर होने लगी.
मार्च 2017 में योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उत्तर प्रदेश में 183 एनकाउंटर हुए हैं.
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'एनकाउंटर'पर उठे सवाल
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं. उन्होंने शुक्रवार को इंदौर में पत्रकारों से बात करते हुए उत्तर प्रदेश को फेक एनकाउंटर और कस्टोडियल डेथ के मामले में नंबर वन बताया है.
उन्होंने कहा, "हम विकास करते रहे. जब किसी अधिकारी ने मुख्यमंत्री जी से कहा कि मेट्रो का काम और आगे बढ़ाया जाए तो उन्होंने कहा, 'विकास से वोट थोड़ी मिलता है.' विकास से वोट मांगते ही नहीं है तभी तो यह एनकाउंटर हो रहे हैं."
गुरुवार को अखिलेश यादव ने कहा था, ''झूठे एनकाउंटर करके बीजेपी सरकार सच्चे मुद्दों से ध्यान भटकाना चाह रही है. भाजपाई न्यायालय में विश्वास ही नहीं करते हैं."
एनकाउंटर पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी सवाल उठाए औऱ कहा कि बीजेपी धर्म के नाम पर एनकाउंटर कर रही है.
ओवैसी ने कहा, "क्या बीजेपी उन लोगों को भी गोली मारेगी जिन्होंने जुनैद और नासिर को मारा. जुनैद और नासिर को मारने वालों का तुम एनकाउंटर नहीं करोगे क्योंकि तुम मज़हब के नाम पर एनकाउंटर करते हो. मारो उनके कातिलों को. नहीं मारोगे, अब तक एक पकड़ा गया, नौ गायब, नहीं करोगे."
उन्होंने कहा, "ये कानून की धज्जियां उड़ रही हैं, तुम संविधान का एनकाउंटर करना चाहते हो, तुम कानून को कमज़ोर करना चाहते हो. फिर कोर्ट किसलिए है…सीआरपीसी, आईपीसी किसलिए हैं, जज किसलिए हैं."
बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कथित एनकाउंटर की उच्च स्तरीय जांच करवाने की मांग की है.
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दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने अखिलेश यादव के बयान पर पलटवार किया है.
बीजेपी उत्तर प्रदेश ट्विटर हैंडल से लिखा गया, "तुष्टिकरण की राजनीति में अंधे हो चुके अखिलेश यादव जी को अपराधियों के एनकांउटर से बेहद पीड़ा हो रही है. वह उनके प्रति सहानुभूति दिखा रहे हैं. उन्हें पीड़ा हो भी क्यों ना, उन्होंने इन अपराधियों को बड़े लाड-प्यार से जो पाला था. भाजपा सरकार में उनका खात्मा हो रहा है."
उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने पुलिस की टीम को बधाई देते हुए इसे एक 'ऐतिहासिक' कार्रवाई बताया है. उन्होंने कहा, "यूपी एसटीएफ़ को बधाई देता हूँ. श्री उमेश पाल एडवोकेट और पुलिस के जवानों के हत्यारों को यही हश्र होना था!"
साथ ही उन्होंने कहा, "समाजवादी पार्टी का चरित्र उत्तर प्रदेश की जनता जानती है. इसलिए समाजवादी पार्टी को यूपी की जनता ने विदा कर दिया है और भारतीय जनता पार्टी का कमल खिला दिया."
एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा, "अजट बिष्ट का दूसरा नाम है मिस्टर ठोक दो. वो जब सांसद में थे, तब भी वो पुलिस या क़ानूनी एजेंसियों को कहते थे कि ठोक दो, मतलब ख़त्म कर दो. ये जंगलराज है. क़ानून का पालन नहीं करना. इन जनाब के अंतर्गत एनकाउंटर हत्याएँ होती रही हैं और अब भी बढ़ रही हैं."
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'एनकाउंटर' पर उठते सवालों के बीच यूपी एसटीएफ़ के एडीजी अमिताभ यश ने न्यूज़ चैनल आजतक से बात करते हुए सवालों के जवाब दिए.
उन्होंने कहा, "डेढ़ महीने से पूरी एसटीएफ़ पूरी ताक़त से इस गैंग के पीछे लगी हुई थी. कई बार मिस हुआ, कई बार इनके हम काफ़ी क़रीब भी पहुँचे, लेकिन फ़ाइनली हमने इन्हें हमने ट्रैक किया. हमने चेलेंज किया, इन्हें सरेंडर करने को कहा. इन्होंने फ़ायर किया और उसका अंजाम भुगता."
अमिताभ यश ने कहा, "आजतक एसटीएफ़ का कोई भी एनकाउंटर ग़लत साबित नहीं हुआ है और न इस बार ग़लत साबित होने की कोई संभावना है. हम हमेशा क़ानून के दायरे में काम करते हैं. ये हम जानते हैं कि विवाद होगा, क्योंकि माफिया गैंग भी विवाद खड़ा करते हैं. वो लीगल सिस्टम का अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं. एसटीएफ़ के ख़िलाफ़ इन गैंग ने कई बार रिट भी किया, लेकिन हर बार एसटीएफ़ बेदाग ही मिली."
भारतीय क़ानून में एनकाउंटर को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की गाइडलाइन्स पुलिस के असीमित बल प्रयोग के ख़िलाफ़ रहे हैं.
क़ानून के जानकार कई ऐसे मामलों को उठाते रहे हैं, जिनमें पीड़ित को इंसाफ़ नहीं मिला.
लेकिन भारत की राजनीति और समाज में एक तबका न्यायिक व्यवस्था से अलग दी जाने वाली सज़ा को प्रोत्साहित करता दिखता है.
इस प्रवृत्ति से कई बार क़ानून के निष्प्रभावी होने की स्थिति पैदा होती है.
2011 में सुप्रीम कोर्ट ने फ़र्ज़ी एनकाउंटर को लेकर कहा था कि जो पुलिसकर्मी इसमें शामिल होते हैं, उन्हें सज़ा-ए-मौत मिलनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस मार्कण्डेय काटजू और जस्टिस सीके प्रसाद की बेंच ने कहा था कि पुलिसकर्मी क़ानून के रक्षक होते हैं और उनसे उम्मीद की जाती है कि लोगों की रक्षा करें न कि कॉन्ट्रैक्ट किलर की तरह मार दें.
तब जस्टिस काटजू की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था, ''पुलिसकर्मियों की ओर से फ़र्ज़ी एनकाउंटर में लोगों को मारना निर्मम हत्या है. इस 'रेअरेस्ट ऑफ रेअर' अपराध की तरह देखना चाहिए. फ़र्ज़ी एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों को मौत की सज़ा मिलनी चाहिए.''
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जस्टिस काटजू की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह टिप्पणी राजस्थान को दो सीनियर आईपीएस अधिकारी अरविंद जैन और एसपी अरशद को सरेंडर करने का निर्देश देते हुए कहा था.
इन पर साल 2006 में 23 अक्तूबर को कथित गैंगस्टर दारा सिंह को फ़र्ज़ी एनकाउंटर में मारने का आरोप था.
जस्टिस काटजू ने कहा था, ''अगर अपराध कोई सामान्य व्यक्ति करता है तो सज़ा सामान्य होनी चाहिए लेकिन अपराध पुलिसवाले करते हैं तो सज़ा कड़ी से कड़ी मिलनी चाहिए क्योंकि इनकी हरकत इनकी ड्यूटी के बिल्कुल उलट थी.''
पिछले साल 26 जुलाई को लोकसभा में पुलिस एनकाउंटर का डेटा रखा गया था.
इस डेटा के अनुसार, 2020-2021 में कुल 82 पुलिस एनकाउंटर हुए थे, जो 2021-22 में बढ़कर 151 हो गए थे.
2000 से 2017 के बीच एनएचआरसी ने एनकाउंटर के 1,782 मामलों को फ़र्ज़ी बताया था.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2018-19 में पुलिस एकाउंटर में 164 लोगों की मौत हुई.
एनएचआरसी की रिपोर्ट के अनुसार, 2013-14 से 2018-19 तक यानी इन पाँच सालों में पुलिस एनकाउंटर में क्रमशः 137, 188, 179, 169 और 164 लोगों की जान गई थी.
इस रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस एनकाउंटर से इन पाँच सालों में सबसे ज़्यादा मौत उत्तर प्रदेश में हुई थी.
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सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने सीनियर वकील दुष्यंत दवे ने बीबीसी हिंदी से कहा कि भारत में एनकाउंटर को सामाजिक वैधता दिलाने की कोशिश की जा रही है और यह बहुत ही ख़तरनाक है.
दुष्यंत दवे ने कहा, ''जब आतंकवादी हमला होता है, तो इस स्थिति में एनकाउंटर को सही ठहराया जा सकता है. बाक़ी किसी भी स्थिति में एनकाउंटर को सही नहीं ठहराया जा सकता है और ये सारे एनकाउंटर राजनीति से प्रेरित होते हैं.''
दवे कहते हैं, ''नक्सली होने के नाम पर आदिवासियों और दलितों का एनकाउंटर, मुसलमानों का एनकाउंटर हमारी न्यायिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल है. एनकाउंटर बताता है कि हमारी सरकार को भी न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं है. न्यायपालिका और मानवाधिकार आयोगों की नींद खुलनी चाहिए. यह बहुत ही ख़तरनाक स्थिति है. अगर हम नहीं जागे, तो हालात और बदतर होंगे. अगर इसे रोका नहीं गया तो अभी की सरकार किसी और तबके को निशाने पर ले रही है और बाद में दूसरी सरकार आएगी तो किसी और तबके को निशाने पर लेगी. एनकाउंटर बताता है कि हमारी पुलिस प्रणाली फेल हो गई है और न्यायपालिका में किसी को भरोसा नहीं है.''
क्या एनकाउंटर को भारतीय समाज में लोकप्रिय समर्थन मिल रहा है? इस सवाल के जवाब में दुष्यंत दवे कहते हैं, ''यह बहुत ही ख़तरनाक स्थिति है और आने वाले समय में इसे रोका नहीं गया तो पुलिसिया दमन बढ़ेगा.''
जाने-माने वकील और स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर रहे उज्ज्वल निकम कहते हैं कि एनकाउंटर को सामाजिक वैधता और लोकप्रिय समर्थन मिलता है, तो यह न्यायपालिका के लिए ख़तरनाक होगा.
निकम कहते हैं, ''आम लोगों में यह भावना है कि अपराधियों को सज़ा नहीं मिलती है और ये न्यायिक जटिलता में उलझ जाती है. ऐसे में अपराधियों को सीधे मार देना चाहिए. यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि इंसाफ़ को सुनिश्चित करें, नहीं तो एनकाउंटर को लेकर लोकप्रिय समर्थन बढ़ेगा.''
इंडियन पीनल कोड यानी आईपीसी के सेक्शन 100 के अनुसार, हमलावर से जान के ख़तरे की सूरत में आत्मरक्षा का अधिकार है.
आईपीसी के सेक्शन 97 के तहत आत्मरक्षा के तहत बल प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन केवल उस स्थिति में जब लगे कि हमलावर के हमले से मौत हो सकती है.
ऐसी स्थिति में पुलिस की कार्रवाई को क़ानूनी कवच मिला हुआ है.
इसके अलावा कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसिज़र यानी सीआरपीसी के सेक्शन 46 के तहत अभियुक्त की गिरफ़्तारी के वक़्त पुलिस बल का इस्तेमाल कर सकती है, अगर अभियुक्त जानलेवा हमला करने वाला हो.
अगर ऐसी स्थिति ना हो और पुलिस किसी को एनकाउंटर के नाम पर मारती है, तो मौत की जवाबदेही पुलिस पर तय होगी.
इस मामले की जाँच होगी और जाँच के आधार पर फ़ैसला किया जाएगा.
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