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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने के बाद से भारत ने रूस से तेल का आयात बढ़ाया है. यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस को पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है जिसकी वजह से उसे सस्ती कीमतों पर तेल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा है. भारत को रूस से सस्ता तेल खरीदने की वजह से अमेरिका समेत तमाम देशों की आलोचना भी झेलनी पड़ी. हालांकि, अब एक रिपोर्ट में सामने आया है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भी रूसी तेल उत्पादों को रियायती दरों पर खरीद रहे हैं और उन्हें अपनी घरेलू खपत के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.
ऐसी रिपोर्ट्स आई हैं कि खाड़ी के ये तेल समृद्ध देश रूस से तेल खरीदकर उसे पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों को निर्यात भी कर रहे हैं. सऊदी और यूएई रूसी तेल और ईंधन के लिए प्रमुख व्यापार और भंडारण केंद्र बनकर उभरे हैं.
वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी और यूएई रूसी कच्चे तेल को रियायती दरों पर खरीदकर उसे अपने देश में रिफाइन कर रहे हैं. सऊदी और यूएई रूसी तेल को घरेलू खपत में इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि अपने तेल को बाजार दरों पर निर्यात कर रहे हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी और यूएई रूसी नाफ्था तेल को 60 डॉलर और रूसी डीजल को 25 डॉलर प्रति टन की छूट पर खरीद रहे हैं.
रूस से तेल खरीद दूसरे देशों को बेच रहे खाड़ी देश
खाड़ी के दोनों देश, विशेष रूप से संयुक्त अरब अमीरात, रूसी तेल और ईंधन के लिए प्रमुख व्यापार और भंडारण केंद्र के रूप में उभरे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि यूएई की कंपनियां रूसी ऊर्जा का आयात कर उसे पाकिस्तान, श्रीलंका या पूर्वी अफ्रीका को बेच रही हैं.
Kpler का डेटा दिखाता है कि पिछले साल यूएई ने रूस से 6 करोड़ बैरल तेल खरीदा लेकिन अब यह खरीद बढ़कर तीन गुनी हो गई है. आर्गस मीडिया के डेटा के मुताबिक, संयुक्त अरब अमीरात का मुख्य तेल भंडारण केंद्र फुजैराह में रूस का 10% से अधिक तेल संग्रहित है.
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से पहले जहां सऊदी अरब रूस से तेल आयात नहीं करता था, अब वो एक दिन में एक लाख बैरल रूसी तेल आयात कर रहा है. यानी वो साल में लगभग 3.6 करोड़ बैरल रूसी तेल की खरीद कर रहा है.
अमेरिका ने जताई है आपत्ति
अमेरिकी अधिकारियों ने रूस और खाड़ी देशों के बीच बढ़ते संबंधों पर आपत्ति जताई है. लेकिन रूस अपने कच्चे तेल (यूराल) को अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड से 30% से अधिक की छूट पर बेच रहा है जिससे खाड़ी देश अमेरिका की नाराजगी को नजरअंदाज कर तेल की खरीद कर रहे हैं.
यूक्रेन पर आक्रमण के बाद अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. ये देश रूसी तेल की खरीद को सीमित या बंद कर चुके हैं. रूसी तेल पर एक प्राइस कैप भी लगाया गया है जिसके तहत रूसी तेल को 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक की दर पर खरीद की मनाही है.
हालांकि, रूस पश्चिम के इन प्रतिबंधों को नाकाम करने में पूरी तरह सक्षम रहा है. 2022 की तिमाही में जहां रूस के समूद्री कच्चे तेल का निर्यात 33.5 लाख बैरल था वहीं, 2023 की पहली तिमाही में यह बढ़कर एक दिन में 35 लाख बैरल हो गया है.
भारत चीन मिलकर खरीद रहे 90 फीसद रूसी तेल
केप्लर के डेटा के मुताबिक, भारत और चीन मिलकर रूसी तेल निर्यात का 90% हिस्सा खरीद रहे हैं. रूस जो तेल यूरोप को निर्यात करता था, प्रतिबंधों के बाद से वो तेल अब भारत और चीन को मिल रहा है. प्रत्येक देश एक दिन में 15 लाख बैरल से अधिक की खरीद कर रहे हैं.
इसके बावजूद भी रूस तेल से उतनी कमाई नहीं कर पा रहा, जितनी वो पहले करता था. रियायती दरों पर तेल बेचने से उसे पहले के मुकाबले अब ज्यादा लाभ नहीं हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने शुक्रवार को कहा कि रूस का तेल के निर्यात से होने वाला राजस्व पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 43% कम है.
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