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कॉलेज कैंपस की दबंगई से लेकर जुर्म की दुनिया के खूनखराबे तक इन दो दोस्तों ने कोई कसर नहीं छोड़ी. पढ़ाई के लिए कॉलेज में दाखिला लेकर आपस में दोस्त बने टिल्लू और गोगी ने कैंपस से ही आपसी दुश्मनी की शुरुआत कर दी थी. पहले से ही एक स्टूडेंट द्वारा टीचर के खून के दाग धो रहे इस कॉलेज कैंपस को कैसे टिल्लू और गोगी ने भी बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आइए वो पूरा किस्सा जानते हैं.
DU के स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज में थे दोस्त
दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध और दिल्ली सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज स्पोर्ट्स एंड गेम्स के लिए बेस्ट माना जाता है. इस कॉलेज के पुराने और नये कैंपस की लाइब्रेरी फैसिलिटी को खूब सराहा जाता है. कॉलेज से पढ़कर कई छात्रों ने राजनीति, खेल और प्रशासनिक ओहदों पर बड़े पद हासिल किए हैं. वहीं यह कॉलेज गोगी और टिल्लू जैसे छात्रों की कहानी भी समेटे हुए है.
कैंपस में और भी ‘क्राइम मास्टर’
टिल्लू और गोगी यहां पढ़कर जुर्म की दुनिया में जाने वाले इकलौती नजीर नहीं हैं. इस कैंपस ने 22 साल पहले भी जुर्म की सनसनीखेज घटना देखी है. डीयू के एक वरिष्ठ शिक्षक नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि वो दिसंबर 2001 का साल था जब मेरे दोस्त बॉटनी टीचर डॉ एमएन सिंह को एक स्टूडेंट ने कैंपस में सबके सामने गोलियों से भून दिया था. वो बताते हैं कि उस समय वो एग्जीक्यूटिव और एकेडमिक काउंसिल चुनाव में ड्यूटी कर रहे थे. तभी उनका एक छात्र आया और कुर्सी पर बैठे मेरे दोस्त के सीने में चार गोलियां उतार दीं. डॉ एमएन सिंह की सिर्फ इतनी ‘गलती’ थी कि उन्होंने उस छात्र को परीक्षा में नकल करते पकड़ लिया था. घटना के बाद ही वो छात्र भी जुर्म की दुनिया में लंबे समय तक छाया रहा, हालांकि सुनते हैं कि बाद में उसका एनकाउंटर हो गया था.
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टिल्लू और गोगी की दोस्ती
अब बात करते हैं, इसी कॉलेज से पढ़े गोगी गैंग के सरगना जितेंद्र सिंह गोगी और टिल्लू गैंग के सरगना सुनील मान उर्फ टिल्लू की कहानी. टिल्लू की तिहाड़ जेल में आज दो मई 2023 को हत्या कर दी गई. इससे पहले जितेंद्र सिंह उर्फ गोगी की हत्या हुई थी. ये बात सब तरफ छाई है कि दोनों गैंगवार में मारे गए. ये दोनों दोस्त कभी कॉलेज कैंपस में दोस्त हुआ करते थे. साल 1991 में दिल्ली से सटे अलीपुर के मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुआ जितेंद्र सिंह ने इस कॉलेज में दाखिला लिया. यहां उसकी दोस्ती टिल्लू ताजपुरिया से हो गई.
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पढ़ाई, राजनीति और गैंगवार…
कॉलेज में पढ़ाई के दौरान गोगी कैंपस की राजनीति में सक्रिय कुछ छात्र नेताओं के संपर्क में रहता था. वहीं टिल्लू भी गोगी की ही तरह कैंपस में छात्र राजनीति में सक्रिय था. बताते हैं कि गोगी ने अपने एक साथी को छात्रसंघ चुनाव में खड़ा किया था. दूसरी तरफ सुनील उर्फ टिल्लू ताजपुरिया ने भी अपने दोस्त को चुनाव में नामांकन करा दिया. तब तक दोनों के बीच कोई ऐसी रंजिश नहीं थी. लेकिन छात्रसंघ चुनाव के दौरान ही टिल्लू के ग्रुप वालों ने गोगी के एक साथी अरुण उर्फ कमांडो को पीट दिया. फिर क्या था, आपस में समझाना बुझाना कोई काम नहीं आया और अपने साथी की पिटाई का बदला लेने के लिए गोगी ने अपने बाकी साथियों के साथ मिलकर टिल्लू के साथियों पर गोली चलाकर हमला कर दिया. बताते हैं कि कैंपस से पढ़ाई के बाद ही दोनों ने अलग-अलग वारदात को अंजाम देना शुरू कर दिया था. टिल्लू नीरज बवानिया सिंडिकेट से जुड़ गया था, वहीं गोगी को दिल्ली पर राज करने का सपना था तो उसने क्रूरता और हिंसा से अपना राज कायम करना शुरू कर दिया था.
जुर्म की दुनिया का ‘अंतिम’ अंजाम
कभी जिगरी दोस्त रहे दोनों ही गैंगस्टर आज दुनिया में नहीं हैं. पूरी जिंदगी जरायम की दुनिया में सिक्का कायम करने के लिए खून बहाने वाले इन गैंगस्टर्स का अंजाम बताता है कि जुर्म की दुनिया में जाना काफी आसान है, लेकिन पढ़ने लिखने की उम्र में अगर ये कदम बहके तो फिर इनकी वापसी मुश्किल होती है.
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