Holi 2023 फाल्गुन मास के पूर्णिमा तिथि के दिन हर्षोल्लास के साथ होली का पर्व मनाया जाता है। रंगों के इस उत्सव को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं वर्ष 2023 में किस दिन खेली जाएगी होली?

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Holi 2023 Date and Shubh Muhurat: हिन्दू धर्म में होली पर्व का विशेष महत्व है। इस दिन देशभर में लोग तरह-तरह के रंगों से रंगोत्सव पर्व मनाते हैं। दीपावली पर्व के बाद होली को दूसरा मुख्य माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ इस महापर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण को होली का पर्व सर्वाधिक प्रिय था। यही कारण है कि ब्रज में होली को महोत्सव के रूप में 40 दिनों तक मनाया जाता है। बसंत पंचमी से इस उत्सव का शुभारंभ हो जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन होली का पर्व मनाया जाता है। आइए जानते हैं वर्ष 2023 में किस दिन मनाया जाएगा होली पर्व और किस दिन की की जाएगी होलिका दहन।

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 06 मार्च 2023, दोपहर 02 बजकर 47 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 07 मार्च 2023, शाम 04 बजकर 39 मिनट पर
होलिका दहन तिथि: 07 मार्च 2023, मंगलवार शाम 06 बजकर 24 मिनट से रात्रि 08 बजकर 51 मिनट तक
रंग वाली होली: 08 मार्च 2023, बुधवार

ब्रह्म मुहूर्त: 07 मार्च 2023 सुबह 04:37 से सुबह 05:23 तक
अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:56 मिनट से दोपहर 12:46 मिनट तक
किवदंतियों के अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक असुरों का राजा था, जिसे देवताओं के नाम से भी घृणा होती थी। अपने अहम में वह इतना मग्न हो गया था कि वह स्वयं को ही भगवान मानता था। हिरण्यकश्यप के घर प्रह्लाद नामक पुत्र ने जन्म लिया जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। अपने ही पुत्र को भगवान का नाम लेता हुआ देख हिरण्यकश्यप ने समय-समय पर उसे मारने का प्रयास किया। लेकिन श्रीहरि के आशीर्वाद से वह बालक हर समय बचता रहा।

जब सब कुछ आजमाने के बाद हिरण्यकश्यप परेशान हो गया तब उसे प्रह्लाद को आग में भस्म करने का सुझाव आया। असुरराज की बहन होलिका को आग में भस्म ना होने का वरदान प्राप्त था। इसलिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन को यह आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में उठाकर आग की शैया पर बैठ जाए। लेकिन इस बार भी श्रीहरि ने अपने परम भक्त को जीवनदान दिया और आग में बैठते ही होलिका पूरी तरह जल गई। यही कारण है कि वर्तमान समय में भी नकरात्मक उर्जा को दूर करने के लिए होलिका दहन का आयोजन किया जाता है।

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